अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा

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भाजपा के 44वें स्थापना दिवस पर विशेष

अटल बिहारी वाजपेयी

मुंबई में आयोजित भाजपा राष्ट्रीय परिषद् में 28 दिसंबर, 1980 को
श्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा दिए गए अध्यक्षीय भाषण का पांचवा भाग―—

भारत सोवियत संघ संबंध में असामंजस्यता

स्वतंत्र पर्यवेक्षक यदि यह निष्कर्ष निकालते हैं कि भारत सोवियत मैत्री एक गठबंधन का रूप ले रही हैं तो उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। हमारे देश की समूची जनता, यहां के सभी राजनीतिक दल सोवियत संघ के साथ हमारे देश के मैत्री संबंधों को और अधिक मजबूत देखना चाहते हैं। जनता शासन में, कुछ क्षेत्रों में व्यक्त आशंकाओं को झुठलाते हुए इन संबंधों में अधिक गहराई तथा व्यापकता लाई गई थी, किंतु सोवियत संघ के साथ द्विपक्षी संबंधों को अधिक अर्थपूर्ण तथा लाभदायक बनाना एक बात है और यह भाव पैदा होने देना बिलकुल दूसरी बात कि विश्व की घटनाओं के बारे में सोवियत संघ से पृथक् हमारे देश का अपना कोई युद्ध-नीतिक बोध नहीं है।

अफगानिस्तान में सोवियत सैनिक हस्तक्षेप और उसके विरुद्ध अमेरिका तथा उससे जुड़े अन्य देशों की प्रतिक्रिया से इस भूखंड में जो नई परिस्थिति पैदा हुई थी, उसके प्रकाश में भारत और पाकिस्तान-दोनों को भूतकाल को भूलकर अपने संबंधों में एक नए अध्याय का आरंभ करना चाहिए था। यह अफसोस की बात है कि दोनों देशों के नेतृत्व ने उस ऐतिहासिक अवसर को हाथ से जाने दिया। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए कि खैबर के दर्रे पर सोवियत सेना की उपस्थिति से उसकी सुरक्षा के लिए उत्पन्न संकट का निराकरण-विश्व में जहां से भी मिले, वहां से हथियार एकत्र करने से नहीं होगा।

मजबूत पाकिस्तान भारत के हित में

हमारे देश को यह समझ लेना है कि इसके और सोवियत संघ के बीच बफर के रूप में विद्यमान पाकिस्तान की स्थिरता तथा सुदृढ़ता उसके हित में है। पाकिस्तान की वर्तमान कठिनाई से लाभ उठाने की लालसा आखिर भारत के लिए ही बहुत महंगी पड़ सकती है।

पाकिस्तान के साथ संबंधों में उत्पन्न गतिरोध को दूर करने के लिए पहल भारत सरकार को करनी चाहिए। भाजपा के उपाध्यक्ष श्री जेठमलानी जब कुछ मास पूर्व अफगान शरणार्थियों की समस्याओं के संबंध में पाकिस्तान गए थे, तब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया ने भारत के पाकिस्तान स्थित राजदूत की उपस्थिति में, उनसे कहा था कि पाकिस्तान युद्ध नहीं, समझौता करने के लिए तैयार है। हमें इस मामले को आगे बढ़ाना चाहिए था। हमें पीकिंग के साथ भी उच्च स्तर पर फिर से वार्त्तालाप प्रारंभ करने के लिए कदम उठाना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय संबंधों में दृढ़ता और निर्भीकता

तेजी से बिगड़ती हुई अंतरराष्ट्रीय परिस्थिति में भारत किसी सार्थक भूमिका का निर्वाह तभी कर सकता है, जब वह दृढ़ता और निर्भीकता के साथ राष्ट्रों की स्वतंत्रता के अपहरण, सीमाओं के उल्लंघन और आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के विरुद्ध असंदिग्ध शब्दों में अपनी आवाज बुलंद करे। इसे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में भी नैतिक बल से काम लेना चाहिए।

बहानों की तलाश

सभी मोरचों पर अपनी भारी विफलता पर परदा डालने के लिए शासन नित्य नए बहाने गढ़ता है। पहले 6 महीने यह कहकर गुजार दिए गए कि जनता सरकार के 28 महीनों में गाड़ी पटरी से उत्तर गई थी, धरती में धंस गई थी, उसे पुनः पटरी पर लाने में वक्त लगेगा। अगले 6 महीने यह कहकर काटे जा रहे हैं कि क्या करें, विरोधी दल कुछ करने ही नहीं देता!

जनता शासन में दिल्ली में महिलाओं के गले से सोने की जंजीरें छीन लिये जाने की इक्का-दुक्का घटनाओं पर आसमान सर पर उठानेवाले लोग आज दिन-दहाड़े होनेवाली डकैतियों को लूटमार बताने के लिए कानूनी बाल की खाल खींचने से नहीं झिझकते रंगा और बिल्ला की गिरफ्तारी में हुई देर के विरोध में मेरे माथे को पत्थर से लहूलुहान करनेवाले जयसिंघानी के हत्यारों का पता लगाने, श्रीमती पूर्णिमा सिंह की मृत्यु पर पड़े रहस्य के परदे को उठाने तथा निरंकारी बाबा की हत्या के लिए उत्तरदायी सभी अपराधियों को गिरफ्तार करने में पुलिस प्रशासन की विफलता के खिलाफ मुंह तक नहीं खोलते।
बिहार में पिपरा और परसबीघा की पीड़ा, बेलछी की पीड़ा से किसी मात्रा में कम नहीं थी। किंतु वहां जाने के लिए प्रधानमंत्री को सरकारी हेलीकॉप्टर का उपयोग करने का भी ध्यान नहीं आया, जब बेलछी जाने के लिए हाथी की सवारी करने में भी उन्हें संकोच नहीं हुआ नारायणपुर के कांड के लिए विरोधी दल की सरकार को बरखास्त करनेवाली प्रधानमंत्री मुरादाबाद में सैकड़ों लोगों की हत्या को रोकने में विफल प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री का त्यागपत्र मंजूर करने के लिए भी तैयार नहीं हुई। आज वे विरोधी दलों पर हर घटना का राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप करते हुए नहीं थकतीं। किंतु उन्होंने स्वयं नारायणपुर में क्या कहा था— इसे वे सरलता से भूल गई जान पड़ती हैं। उन्होंने कहा था कि यदि सरकार गलती करती है तो विरोधी दल उसका फायदा क्यों न उठाएं!

किसान संघर्ष

वस्तुस्थिति यह है कि देश के विभिन्न भागों में जन-आंदोलनों की जो लहर आई है, यह स्वयंस्फूर्त है। असम में विदेशियों की घुसपैठ के विरुद्ध पिछले एक वर्ष से चल रहा आंदोलन, जिसने जन समर्थन तथा जन सहयोग की व्यापकता की दृष्टि से स्वतंत्रता आंदोलन को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध युवाशक्ति का एक राष्ट्रीय अनुष्ठान है। दलगत राजनीति अथवा राजनीतिक दलों से उसका कोई संबंध नहीं है।
कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश आदि में किसान अपनी मांगों को मनवाने के लिए जो संघर्ष कर रहे हैं, वह राजनीतिक दलों द्वारा प्रेरित नहीं है। सभी किसान चाहे वे किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध हों; इसमें सत्तारूढ़ दल से जुड़े हुए किसान भी शामिल हैं, इस लड़ाई में भाग ले रहे हैं।

आसमान छूती महंगाई

पिछले कुछ वर्षों में किसानों की आर्थिक स्थिति बिगड़ी है। रासायनिक खाद, पानी, बिजली, डीजल, बीज आदि के दाम बढ़े हैं, किंतु उस अनुपात में उपज के मूल्य नहीं बढ़े। अकृषि वस्तुओं की भारी महंगाई ने भी किसान को बुरी तरह प्रभावित किया है। वह उत्पादक के साथ उपभोक्ता भी है।

ग्रामीण ऋणग्रस्तता

ग्रामीण ऋणग्रस्तता के आंकड़े चौंकानेवाले हैं। कुछ वर्ष पहले ग्रामीण क्षेत्र में जो ऋण बकाया थे, उनकी राशि 750 करोड़ रुपए थी। अब यह बढ़कर 6000 करोड़ रुपए हो गई है। 85 फीसदी किसान कर्ज में डूबे हैं। भारतीय जनता पार्टी किसानों की लाभप्रद मूल्यों की मांग को सर्वथा उचित समझती है और उसका पूरी तरह समर्थन करती है।

जब तक गन्ना और चीनी, कपास और कपड़ा, मूंगफली और वनस्पति तेल, और जूट से बने सामान की कीमतों में कोई अनुपात कायम नहीं किया जाता, तब तक कच्चे माल के उत्पादकों का शोषण होता रहेगा और औद्योगिक माल के निर्माता अंधाधुंध मुनाफा कमाते रहेंगे।

कपास की गिरती कीमतें

पिछले कुछ वर्षों में कपड़े के दामों में तीन गुना वृद्धि हुई है, किंतु कपास के दाम गिरे हैं। आंध्र प्रदेश का प्रसिद्ध कपास वरलक्ष्मी, जिसकी कीमत पहले 1200-1500 रुपया प्रति क्विंटल थी, अब 500 रुपए तक नीचे आ गई है। जूट उत्पादन का लागत मूल्य 192 रुपए प्रति टन है, जबकि सरकार द्वारा निश्चित कीमत मात्र 150 रुपए प्रति टन है।

आंध्र प्रदेश में सरकार ने धान का समर्थन मूल्य 105 रुपए प्रति क्विंटल तय किया था, किंतु खरीद का समुचित प्रबंध न होने के कारण किसानों को अपना धान 75 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से बेचने के लिए विवश होना पड़ा। यह स्थिति अन्यत्र तथा अन्य फसलों के सिलसिले में भी हुई है।

कृषि उत्पाद मूल्य

कृषि मूल्य आयोग अपने कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहा है। उसे भंग कर दिया जाए और एक नई संस्था का गठन किया जाए, जो कृषि उपज के मूल्य का निर्धारण करते समय लागत खर्च के साथ-साथ औद्योगिक माल की कीमतों, किसान के बढ़ते हुए खर्चों तथा उसकी आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखे।

किसानों में जागृति

सदियों की तंद्रा त्यागकर किसान अपना न्यायोचित अधिकार पाने के लिए उठ खड़ा हुआ है। देश को अन्न की दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने और अरबों की विदेशी मुद्रा बचाने का श्रेय किसानों को है। छोटे-बड़े के आधार पर किसान आंदोलन में फूट डालने या ग्रामीण उत्पादक तथा शहरी उपभोक्ता के बीच भेद पैदा करने की कोशिश सफल नहीं होगी। आंदोलन से ग्रामीण क्षेत्रों में फैली भूमिहीन मजदूरों को भी लाभान्वित करेगी।

खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि
सरकार को चाहिए कि किसानों को विश्वास में ले और उनके साथ परामर्श करके अन्नोत्पादन को दुगुना करने का एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाए। विश्व काफी लंबे समय तक अन्न की कमी से पीड़ित रहनेवाला है। अन्न का बड़ा निर्यातक देश बनने की पूरी संभावनाएं हमारे देश में विद्यमान है।

              क्रमश: