यह सरकार गरीबों के लिए काम करने वाली सरकार है : अमित शाह

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                                                               संसद में भाषण

केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह ने नौ अगस्त को लोक सभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चल रही बहस में भाग लिया। उन्होंने कहा कि ये अविश्वास प्रस्ताव ऐसा है जिसमें प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् के प्रति न जनता और न ही सदन को अविश्वास है। ये अविश्वास प्रस्ताव सिर्फ जनता में भ्रांति पैदा करने के लिए लाया गया है और ये जनता की इच्छाओं का प्रतिबिंब नहीं है। ‘कमल संदेश’ के सुधी पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत है अविश्वास प्रस्ताव पर श्री शाह की बहस का सारांश :

मैं आज विपक्ष द्वारा सभा में प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए खड़ा हूं। मैं निश्चित रूप से इस निर्णय पर पहुंचा हूं कि यह अविश्वास प्रस्ताव केवल और केवल भ्रांति खड़ा करने के लिए लाया गया है। यह प्रजा की इच्छाओं का प्रतिबिंब नहीं है। जनता में सरकार के प्रति विश्वास विद्यमान है। विश्वास इसलिए है कि देश के 60 करोड़ गरीबों को उनके जीवन में नई आशा का संचार अगर कोई एक प्रधानमंत्री और एक सरकार ने किया है, वह यह सरकार है। आजादी के बाद किसी सरकार में जनता को सबसे ज्यादा विश्वास है, तो वह इस सरकार में है। आजादी के बाद देश में अगर कोई सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं, तो वह वर्तमान प्रधानमंत्री हैं।

पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस को तरजीह

इस सरकार के नौ सालों में 50 से ज्यादा ऐसे फैसले हैं। जो इतिहास के अंदर स्वर्ण अक्षरों से निबंधित हैं। वर्ष 2014 से पहले भारतीय लोकतंत्र भ्रष्टाचार, जातिवाद और परिवारवाद से जकड़ा हुआ था। माननीय प्रधानमंत्री जी ने भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण को हटाकर पॉलिटिक्स ऑफ परफॉर्मेंस को तरजीह दी। अविश्वास का प्रस्ताव एक संवैधानिक प्रक्रिया है। विपक्ष का यह अधिकार है कि वह अविश्वास का प्रस्ताव लेकर आए। अविश्वास के प्रस्ताव से पार्टियों और गठबंधनों के चरित्र उजागर होते

हैं। ऐसा पहले कई अविश्वास प्रस्तावों के दौरान देखने में आया है। मोदी जी के नेतृत्व में, भारतीय जनता पार्टी देश में सिद्धांतों की राजनीति को प्रस्थापित करने के लिए राजनीति में है, येन-केन-प्रकारेण सत्ता को बचाने के लिए राजनीति में नहीं है। जब अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है तो सरकार के समग्र कामकाज पर क्वेश्चन मार्क लगाते है। चूंकि यह क्वेश्चन मार्क पॉलिटिकली मोटिवेटेड है, इसलिए मुझे सरकार के परफॉर्मेंस की चर्चा करनी पड़ेगी।

गरीब कल्याण

इस सरकार ने 9.6 करोड़ गरीब परिवारों के गैस सिलैंडर देने और 11.72 लाख परिवारों को शौचालय देने का काम किया। ‘हर घर जल’ के माध्यम से 12.65 लाख घरों में नल से जल पहुंचाने का काम किया है। 14.5 करोड़ किसानों के बैंक अकाउंट में 2,40,000 करोड़ रुपये डाले। 50 करोड़ लोगों को पांच लाख रुपए तक का सारा स्वास्थ्य का खर्चा माफ कर दिया है। 25 लाख करोड़ रुपया देश के गरीबों के बैंक अकाउन्ट में सीधा ट्रांसफर किया गया है। सरकार के कुशल नेतृत्व में देश कोरोना काल का सफलतापूर्वक सामना कर पाया। सरकार ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बनाया, पिछड़े वर्गों को संवैधानिक मान्यता दी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 प्रतिशत का रिजर्वेशन दिया।
यह सरकार गरीबों के लिए काम करने वाली सरकार है। स्वास्थ्य के बजट में 139 प्रतिशत की वृद्धि की गई है। पिछले आठ वर्षों में 4,85,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। ‘आत्मनिर्भर भारत’ की रचना कैसी होती है, इसकी नींव कैसे डाली जा सकती है, डिफेंस जैसे अति टेक्नोलॉजी और स्पर्धात्मक क्षेत्र में इस काम को इस सरकार ने किया है। आज भारत रक्षा उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बना है। किसानों के कल्याण के लिए ढेर सारे काम किए गए हैं। बजट में छह गुना वृद्धि की गई है। सबसे ज्यादा एमएसपी और ज्यादा मात्रा में धान खरीदने का काम इसी सरकार ने किया है। मैं देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता हूं। पीएफआई जैसे संगठन कई सालों से देश को तोड़ने, इसकी जनसांख्यिकी बदलने और देश के अंदर आतंकवाद के बीज बोने का काम कर रही थी। इस पर बैन लगाकर पीएफआई वालों को जेल की सलाखों के पीछे डाला।

आंतरिक सुरक्षा

सरकार ने ड्रग्स और नारकोटिक्स के बढ़ते चलन से पूरे देश को मुक्त करने के लिए अनेक कदम उठाए है और इसमें अपार सफलता हासिल की है। इस देश की आंतरिक सलामति की दृष्टि से तीन बड़े हॉटस्पॉट माने जाते हैं—कश्मीर, वामपंथी उग्रवाद का क्षेत्र और नॉर्थ-ईस्ट। कांग्रेस की सरकार सालों तक रही और यह चलता रहा। आज मैं स्पष्ट रूप से इस सदन में कहना चाहता हूं कि कश्मीर की समस्या का कारण वोट बैंक की राजनीति, समस्या से आंख मूंदना और सरकारों का ढुलमुल रवैया था। कश्मीर में वर्ष-2014 से हमारी नीतियों में परिवर्तन आया। कश्मीर के अंदर परिवर्तन लाने वाला युगान्तरकारी निर्णय इस सरकार ने किया। पिछले 9 साल की अवधि में आतंकवाद की कुल घटनाओं में 68 प्रतिशत की कटौती हो चुकी है। सिक्युरिटी और नागरिक, दोनों को मिलाकर कुल मौतों में 72 प्रतिशत की कमी हुई है। सिर्फ नागरिकों की मौतों में 82 प्रतिशत की कमी हुई है। एनआईए और ईडी को जोड़ा गया। और अलगाववादी गतिविधियों को संज्ञान देने वाले फाइनेंस की कमर तोड़ी गई। वामपंथी उग्रवाद और उसके केसों की जांच के लिए एनआईए में एक अलग वर्टिकल बनाया गया।

नॉर्थ-ईस्ट को मेनस्ट्रीम में लाने का काम

अब मैं पूर्वोत्तर की बात करना चाहता हूं। नॉर्थ-ईस्ट भी जो तीसरा हॉटस्पॉट माना जाता था। वहां हिंसक घटनाएं 10,000 से घटकर 3,238 हुई हैं। यानी 68 प्रतिशत कम हुई है। हताहत सुरक्षा बल— 397, अब 128 हैं, 68 प्रतिशत की कमी हुई। मृत्यु नागरिक—2,298 थी, अब 420 हैं, 82 प्रतिशत की कमी हुई है। हर हेड में नॉर्थ-ईस्ट के अंदर हिंसा कम हुई है। मोदी सरकार ने नॉर्थ-ईस्ट को मन से भारत के साथ जोड़ने का काम किया है। और नॉर्थ-ईस्ट को मेनस्ट्रीम में लाने का काम किया है। मोदी जी 9 साल में 50 से ज्यादा बार नॉर्थ ईस्ट गए हैं। एक भ्रान्ति देश भर की जनता के सामने फैलाई गई है कि यह सरकार मणिपुर पर चर्चा के लिए तैयार नहीं है। मैं आज यह बताना चाहता हूं कि सदन आहूत भी नहीं हुआ था, मैंने पत्र लिखकर अध्यक्ष जी से मांग की थी कि सरकार के लिए तैयार; मैं चर्चा के लिए तैयार हूं, मगर वे चर्चा नहीं चाहते थे, उनको विरोध करना था। अगर वे मेरी चर्चा से संतुष्ट न होते तो फिर कहते कि प्रधानमंत्री जी चर्चा करें। मणिपुर जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर गृह मंत्री को अपना पक्ष न रखने दें, तो किस प्रकार की डेमोक्रेटिक व्यवस्था आप चाहते हैं?

हिंसाओं का आंकड़ा इसलिए बताना चाहता हूं कि मणिपुर की नस्लीय हिंसाओं के स्वभाव को जनता को जानना पड़ेगा। मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी की सरकार को छह साल पूरे हो चुके हैं। इन छः सालों में मणिपुर में कुल 8,000 सशस्त्र उग्रवादियों ने नरेन्द्र मोदी जी के 9 साल में सरेंडर किया है। मणिपुर में आग की लपटें क्यों हुई, मैं उस बात पर आता हू, परंतु आपके समय में तो आठों राज्य आग की लपटों से घिरे हुए थे और हिंसा में 6 हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे, जो अब सरेंडर होकर मेनस्ट्रीम के अंदर आए। पूर्वोत्तर के अंदर हमने हिंसक घटनाओं में 68 प्रतिशत, सुरक्षा बलों की हत्याओं में 68 प्रतिशत और हताहत नागरिक में 82 प्रतिशत की कमी की है।

मणिपुर में हिंसक घटनाएं शर्मनाक

अब मैं मणिपुर की बात करना चाहता हूं कि मणिपुर में जो हिंसक घटनाएं हुई हैं, वे क्यों हुई हैं, क्या स्थिति है और इससे निपटने के लिए हमने क्या कुछ किया है। वहां पर हिंसा का और तांडव हुआ है यह परिस्थितिजन्य ऐसी घटनाओं का कोई समर्थन नहीं कर सकता जो घटना वहां हुई है, वह शर्मनाक है, परन्तु उस घटना पर राजनीति करना इससे भी ज्यादा शर्मनाक है।

29 अप्रैल को एक अफवाह फैल गई कि जो शरणार्थियों की 58 बसावटें थीं, वे गांव घोषित कर दिए। ये अफवाहें जब फैलती हैं तो वह फैलती है और अविश्वास का वातावरण बनता है। उससे एक अनरेस्ट खड़ा हुआ। उसके बाद आग में तेल डालने का काम माननीय हाई कोर्ट, मणिपुर के आए हुए एक फैसले ने किया। जिसके अंतर्गत 29 अप्रैल के पहले मैतेई जाति को ट्राइबल घोषित कर दिया। ट्राइबलों में बड़ा अनरेस्ट हुआ कि अब मैतेई ट्राइबल बन जाएंगे। ये परिस्थिति जन्य दंगे हैं। वर्ष 2021 म्यांमार में सत्ता का परिवर्तन होने के बाद से मिजोरम और मणिपुर में कुकी भाइयों का शरणार्थी के रूप में आना शुरू हो गया। मणिपुर के बाकी हिस्सों में एक असुरक्षा की भावना पैदा हो गई कि हमारी जनसांख्यिकी बदल जाएगी। हमने उसे देखा और उसी वक्त हमने गृह मंत्रालय में फिर इससे एक अंदेशा खड़ा होने लगा, क्योंकि वहां पर जनसांख्यिकी बहुत निर्णायक होती है। वहां पर घाटी में मैतई रहते हैं और पहाड़ पर कुकी और नागा ट्राइबल भाई रहते हैं। तो जनसांख्यिकी के बदलाव का बड़ा दबाव रहता है कि हम अल्पमत में आ जाएंगे। एक असुरक्षा की भावना मैतई लोगों में फैलती गई। माननीय प्रधानमंत्री ने इस पूरे मामले का तुरंत संज्ञान लिया और सरकार द्वारा सुरक्षा बलों की भारी संख्या में तैनाती और अनेक अन्य प्रशासनिक उपायों का अविलम्ब प्रभावी किया गया। हिंसा की घटनाएं धीरे-धीरे कम हो रही हैं।

शांति के लिए प्रयास

मैं वहां शांति के लिए किए गए प्रयासों से भी सदन को अवगत करना चाहता हूं। हमने इस सारे मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के सेनानिवृत्त न्यायाधीश का एक कमीशन बना दिया है, जिसमें एक आईएएस और आईपीएस अफसर भी हैं। राज्यपाल महोदय को उसका अध्यक्ष बनाकर शांति समिति को हमने वहां प्रस्थापित किया है। 36,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी, मैतई और कुकी समुदायों समूह रहता है, के बीच में बफर जोन बनाकर खड़े हैं। बेहतर इंटर एजेंसी समन्वय के लिए यूनिफाइड कमांड व्यवस्था बनाई है, क्योंकि वहां बीएसएफ भी है, सीआरपीएफ भी है, असम राइफल्स भी है, सेना भी है और मणिपुर पुलिस भी है। पांचों सुरक्षा पीड़ित और पुनर्वसन पैकेज दिया गया है। सभी मृतकों के परिवार वालों को दस लाख रुपए चुकाने का काम समाप्त हो चुका है। लगभग 30 हजार मीट्रिक टन चावल वहां भेजा गया है। किसी भी क्षेत्र में मेडिकल सुविधाओं का अभाव न हो, भारत सरकार की आठ टीमें अलग-अलग एम्स से वहां कैम्प कर दी गई हैं। 98 प्रतिशत स्कूल खुले हैं घाटी में 98 प्रतिशत स्कूल्स खुल गए हैं, 80 प्रतिशत उपस्थिति रहती है। सुरक्षा की समीक्षा हर सप्ताह वीडियो कांफ्रेंस से यूनिफाइड कमांड के साथ की जा रही है। इतनी क्लोज़-वॉच के साथ वहां शांति बनाने का प्रयास चल रहा है। मैं इस सदन के माध्यम से मणिपुर के दोनों समुदायों से करबद्ध निवेदन करना चाहता हूं कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मेरा अनुरोध है कि साथ में बैठकर, भारत सरकार के साथ बैठकर इस समस्या का समाधान निकाल दीजिए। अफवाहों से ज्यादा अविश्वास का वातावरण पैदा हुआ है। भारत सरकार की जरा भी मंशा नहीं है कि वहां की डेमोग्राफी को चेंज कर दिया जाए। मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि इस विषय पर राजनीति नहीं करनी चाहिए।