भारत को ‘साइबर सुरक्षित समाज’ क्यों बनना चाहिए

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अमित शाह

दुनिया ने पिछले कुछ दशकों में महत्वपूर्ण तकनीकी परिवर्तनों को देखा है। डिजिटल प्लेटफॉर्म के बढ़ते उपयोग ने जीवन को सरल और तीव्र बना दिया है। लेकिन यह लाभ साइबर सुरक्षा से जुड़े कुछ गंभीर जोखिम के साथ आते हैं। साइबरस्पेस की सीमाहीन प्रकृति के साथ इससे जुड़े खतरे और साइबर अपराधियों के छलपूर्ण तरीके एवं उपकरण के कारण साइबर हमलों की प्रवृत्ति लगातार बदल रही है। इसके अलावा, आतंकवाद और कट्टरवाद को भी साइबर स्पेस में पनाह मिल रही है। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, “साइबर सुरक्षा अब डिजिटल दुनिया तक सीमित नहीं है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला बन गया है।” साइबरस्पेस युद्ध का नया क्षेत्र बन गया है।

65 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता, 114 करोड़ मोबाइल उपयोगकर्ता, 6 लाख से अधिक गांवों तक ब्रॉडबैंड इंफ्रास्ट्रक्चर और 9,000 करोड़ रुपये से अधिक के डिजिटल लेनदेन के साथ भाजपा सरकार ने विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित सुविधाओं को जन-जन तक सफलतापूर्वक पहुंचाया है। डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार के पीछे मूलभूत विचार यह था कि अगर गरीब की पहुंच प्रौद्योगिकी तक नहीं है, तो प्रौद्योगिकी को उन तक पहुंचना चाहिए

2014 से पहले यह माना जाता था कि डिजिटल सेवाओं तक पहुंच विशेष रूप से शहरी और समृद्ध परिवारों तक सीमित है। इस यथास्थितिवादी सोच से एक क्रांतिकारी बदलाव के साथ मोदी सरकार ने 2015 में प्रत्येक नागरिक के लिए ‘मौलिक सेवा के रूप में डिजिटल बुनियादी ढांचा’ बनाने के लिए ‘डिजिटल इंडिया’ को एक व्यापक अवधारणा के रूप में पेश किया। 65 करोड़ इंटरनेट उपयोगकर्ता, 114 करोड़ मोबाइल उपयोगकर्ता, 6 लाख से अधिक गांवों तक ब्रॉडबैंड इंफ्रास्ट्रक्चर और 9,000 करोड़ रुपये से अधिक के डिजिटल लेनदेन के साथ भाजपा सरकार ने विशेषाधिकार प्राप्त लोगों तक सीमित सुविधाओं को जन-जन तक सफलतापूर्वक पहुंचाया है। डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के विस्तार के पीछे मूलभूत विचार यह था कि अगर गरीब की पहुंच प्रौद्योगिकी तक नहीं है, तो प्रौद्योगिकी को उन तक पहुंचना चाहिए।

(Representative Image)

तकनीकी प्रगति का मानवीय अनुप्रयोग हमेशा प्रधानमंत्री मोदीजी के लिए प्राथमिकता रहा है। उन्होंने प्रौद्योगिकी के उपयोग में संवेदनशीलता सुनिश्चित करने के लिए ‘इमोश्न ऑफ थिंग्स’ को ध्यान में रखते हुए ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ पर काम करने पर लगातार जोर दिया है।

नौ वर्षों में हमारी सरकार ने खरीद, कल्याणकारी योजनाओं के लाभ हस्तांतरण और वित्तीय समावेशन के लिए एक मजबूत डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया है। मोदी सरकार के इन प्रयासों और पहलों ने अमृत काल की नींव रखी है – भारत जल्द ही 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था और 2047 तक एक विकसित देश बन जाएगा।

लेकिन सरकार तकनीक के तेजी से विस्तार के साथ आने वाले खतरों के प्रति भी सचेत है और नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करने और साइबर अपराध से निपटने के लिए गृह मंत्रालय ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। साइबर अपराध से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी के बुनियादी ढांचे को विकसित करने की एक परियोजना को पूरा किया गया है और पुलिस कांस्टेबल स्तर तक इसकी पहुंच को सुनिश्चित किया गया है। प्रधानमंत्री श्री मोदी के दृष्टिकोण के अनुरूप केंद्रीय-राज्य एजेंसियों के बीच समन्वय में काफी सुधार हुआ है, जिसमें एक समान साइबर रणनीति, साइबर अपराधों की रीयल-टाइम रिपोर्टिंग, कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता निर्माण, विश्लेषणात्मक उपकरणों का विकास, फोरेंसिक प्रयोगशालाओं का राष्ट्रीय नेटवर्क, साइबर स्वच्छता सुनिश्चित करना और नागरिकों को साइबर अपराधों के प्रति जागरूक बनाना शामिल है।

क्राइम एंड क्रिमिनल ट्रैकिंग नेटवर्क एंड सिस्टम्स (सीसीटीएनएस) को अब देश के सभी 16,447 पुलिस थानों में एकीकृत कर दिया गया है। अब 99.9 प्रतिशत पुलिस थानों में 100 प्रतिशत एफआईआर तुरंत

गृह मंत्रालय सबसे कमजोर वर्ग को सुरक्षित बनाने के लिए साइबर स्वच्छता को बढ़ावा दे रहा है। हमारी सरकार ने हमेशा ‘निवारक और सक्रिय दृष्टिकोण’ के साथ अपनी जिम्मेदारी का पालन किया है – साइबर दुनिया के लिए फोरेंसिक-प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को लगभग 100 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया गया है

सीसीटीएनएस में दर्ज की जाती हैं। इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (आईसीजेएस) को अदालतों, पुलिस, अभियोजन पक्ष, जेलों और फोरेंसिक प्रयोगशालाओं के बीच डेटा का आदान-प्रदान करने और न्याय में तेजी लाने के लिए शुरू किया गया है।

हाल ही में सरकार ने आईसीजेएस के दूसरे चरण को मंजूरी दी है, जो ‘एक डेटा, एक प्रविष्टि’ के सिद्धांत पर आधारित है और इसे हाई-स्पीड कनेक्टिविटी के साथ एक समर्पित और सुरक्षित क्लाउड-आधारित बुनियादी ढांचे के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा।

इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C), जिसके तहत सात प्लेटफॉर्म; एक रिपोर्टिंग पोर्टल, एक साइबर-खतरा विश्लेषणात्मक इकाई, एक साइबर क्राइम इन्वेस्टिगेशन टास्क फोर्स और एक रिसर्च सेंटर हैं, यह एक दूसरे के साथ समन्वय में काम करते हैं। अब तक पोर्टल पर 20 लाख से अधिक साइबर अपराध की शिकायतें दर्ज की जा चुकी हैं, जिनमें से 40,000 को एफआईआर में बदल दिया गया है। पंद्रह करोड़ लोगों ने इस पोर्टल का उपयोग किया है।

फिंगरप्रिंट डेटा सिस्टम ‘NAFIS’ को ‘1930 हेल्पलाइन’ के साथ लॉन्च किया गया है, जिसमें 300 करोड़ फिंगरप्रिंट डेटा स्टोरेज की क्षमता है। इस प्लेटफॉर्म पर 250 से अधिक बैंक और वित्तीय मध्यस्थ शामिल हैं, यह सिस्टम वास्तविक समय की कार्रवाइयों में मदद करता है जैसेकि धोखाधड़ी वाले धन को अवरुद्ध करना और ग्रहणाधिकार चिह्नित करना। टास्क फोर्स की त्वरित रिपोर्टिंग प्रणाली और कार्रवाई के परिणामस्वरूप अब तक 1.33 लाख से अधिक नागरिकों से साइबर अपराधियों द्वारा गबन किए गए 235 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली हुई है।

पोस्को (POCSO) के तहत दर्ज यौन उत्पीड़न के मामलों और इन मामलों की वास्तविक समय की निगरानी एवं प्रबंधन के लिए ITSSO (यौन अपराधों के लिए जांच ट्रैकिंग प्रणाली) पोर्टल 2019 में लॉन्च किया गया था। सुरक्षित शहर परियोजना जिसका उद्देश्य सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सशक्त वातावरण बनाना है, का विस्तार आठ चयनित शहरों में किया गया है।

गृह मंत्रालय सबसे कमजोर वर्ग को सुरक्षित बनाने के लिए साइबर स्वच्छता को बढ़ावा दे रहा है। हमारी सरकार ने हमेशा ‘निवारक और सक्रिय दृष्टिकोण’ के साथ अपनी जिम्मेदारी का पालन किया है – साइबर दुनिया के लिए फोरेंसिक-प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना के लिए राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को लगभग 100 करोड़ रुपये का अनुदान प्रदान किया गया है।

साइबर सुरक्षा को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों दोनों की सामूहिक जिम्मेदारी है। राज्यों को उनकी साइबर सुरक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए समर्थन देने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं। आई4सी के तहत ‘CyTrain’ पोर्टल पर एक विशाल ओपन ऑनलाइन कोर्स प्लेटफॉर्म (MOOCs) को विकसित किया गया है, जबकि सेल कर्मचारियों को क्रिप्टो करेंसी, डार्क वेब, एनोनिमाइजेशन नेटवर्क, डीप फेक आदि पर प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया है।

साइबर सुरक्षा की चुनौतियां लगातार विकसित हो रही हैं और हमें खतरों से आगे रहने के लिए नए दृष्टिकोण ‘नवाचार, अपनाना और लागू करना’ को अपनाते रहना होगा। समाज एक प्रौद्योगिकी संचालित जीवन शैली की दिशा में विकसित हो रहा है। उपयुक्त नीति निर्धारित करने के लिए हमें सूक्ष्म पैमाने पर इस दीर्घकालिक बदलाव को समझना चाहिए— हमारा लक्ष्य ‘साइबर सुरक्षित समाज’ बनाना है न कि ‘साइबर विफल समाज।’

हमें ‘संवेदनशीलता के साथ प्रौद्योगिकी का उपयोग’ और ‘सार्वजनिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने’ के दोहरे उद्देश्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने का अवसर मिला है। हालांकि, यह कार्य अकेले सरकारों द्वारा नहीं किया जा सकता है। मैं नागरिकों से ऑनलाइन सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए जागरूक और सतर्क रहने की अपील करता हूं। साइबर सुरक्षा एक साझा जिम्मेदारी है और हमें यह सुनिश्चित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए कि हमारी डिजिटल दुनिया सभी के लिए सुरक्षित बनें।

                                     (लेखक केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री हैं)