सादगी के प्रतिमूर्ति थे दीनदयालजी: नरेन्द्र मोदी

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‘पं. दीनदयाल संपूर्ण वांङ्मय’ का लोकार्पण

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 9 अक्तूबर को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित ‘पंडित दीनदयाल उपाध्याय सम्पूर्ण वांङमय’ का लोकार्पण किया और इस अवसर पर उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के सि(ांतों, विचारों एवं जीवन के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करते हुए लोगों से उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि विचार अपने आप में एक शक्ति होता है और उस विचार यात्रा का सम्पुट आज हमें प्रसाद के रूप में मिला है, मैं आप सबका इस प्रसाद के लिए हृदय से बहुत आभारी हूं। सभी देशवासियों को विजयादशमी की अग्रिम बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह विजयादशमी देश के लिए बहुत ही खास है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक सार्वजनिक व्यक्ति के जीवन को, उनके विचारों एवं उनकी उपलब्धि को कलमब( करना काफी दुष्कर नहीं होता क्योंकि चीजें उपलब्ध होती हैं, लेकिन एक ऐसे व्यक्ति, जिसका जीवन तो सार्वजनिक हो लेकिन वह पहचान न बनाने की भूमिका में जीते हुए देश और समाज के कल्याण में पूर्णतया अपना सारा जीवन खपा दे, उनकी जीवनी, उनके विचारों और उनके दृष्टिकोण को जनता तक पहुंचाने के लिए वाङ्मय निर्माण का यह प्रयास एक भागीरथ प्रयास है। उन्होंने कहा कि ये 15 ग्रंथ पंडित जी की जीवन यात्रा, विचार यात्रा और संकल्प यात्रा की त्रिवेणी है और आज का यह पल त्रिवेणी के चरणामृत लेने का पर्व है।

उन्होंने कहा कि दीनदयाल जी सादगी की प्रतिमूर्ति थे, इतने कम समय में, अल्प राजनीतिक जीवन में एक राजनीतिक दल, एक विचार, एक राजनीतिक व्यवस्था और विपक्ष से विकल्प तक की यात्रा को कोई पार कर ले, यह छोटी सि(ि नहीं। उन्होंने कहा कि विपक्ष से विकल्प तक की यह यात्रा संभव इसलिए बनी है कि पंडित जी ने जिस विचार बीज से फाउंडेशन बनाया था, जो नींव डाली थी, आज उसी का परिणाम है कि हम विपक्ष से विकल्प तक की यात्रा विश्व के सामने प्रस्तुत कर पाए हैं।
श्री मोदी ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने संगठन आधारित राजनीति दल का एक पर्याय देश के सामने प्रस्तुत किया। जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी तक की यात्रा संगठन आधारित राजनीति की अलग पहचान है और इसका श्रेय पंडित दीनदयाल जी को जाता है। उन्होंने कहा कि श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे कि अगर मेरे पास दो दीनदयाल हो तो मैं हिन्दुस्तान की राजनीति का चरित्र बदल सकता हूं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि 60 के दशक में ‘नेहरू के बाद क्या नहीं बल्कि नेहरू के बाद कौन’ का विचार चलता था, पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक एक ही राजनीतिक दल की व्यवस्था थी, कोई विकल्प नहीं था। उन्होंने कहा कि 62 से 67 का कालखंड पंडित जी को समझने के लिए बहुत बड़ा मूल्य रखता है। उन्होंने कहा कि डाॅ. राममनोहर लोहिया ने भी कहा था कि यह दीनदयाल जी के विशाल दृष्टिकोण का ही परिणाम था कि विभिन्न विचारधारा वाले दल साथ आए और राष्ट्र को एक वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था दी। उन्होंने कहा कि पंडित जी की एक और विशेषता थी, उन्होंने कार्यकर्ता के निर्माण पर बल दिया, राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक नई श्रेणी तैयार की जिसका कोई राजनीतिक गोत्र न हो। उन्होंने कहा कि पंडित जी ने एक स्वतंत्र चिंतन वाला, राष्ट्रभक्ति से प्रेरित, समाज को समर्पित कार्यकर्ताओं का समूह, इससे बना हुआ संगठन और इस संगठन से राजनीतिक जीवन में पदार्पण, ऐसे कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की और इसलिए उन्होंने संगठन को वैचारिक अधिष्ठान देने के लिए, कार्यकर्ताओं के निर्माण में, संगठन के विस्तार में अपना पूरा जीवन खपा दिया।

श्री मोदी ने कहा कि एक ऐसा राजनीतिक दल जिसका कार्यकर्ता संगठनकेंद्री है और एक ऐसा संगठन जो राष्ट्रकेंद्री है, ऐसी व्यवस्था पंडित जी ने देश को दी है। आज हम जहां भी काम कर रहे हैं, उसका तुलनात्मक अध्ययन कोई भी कर ले, हम तो चाहते हैं कि विश्लेषक वर्ग द्वारा हर राजनीतिक पार्टी के शासन काल का मूल्यांकन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंडित दीनदयाल जी ने अपने पसीने से, यूं कहें कि अपने खून से जिस पार्टी को सींचा, जिस विचार को अपनाया, वह तपस्या आज भी कसौटी पर खड़ा उतरने के लिए सामथ्र्यवान है, यह विश्वास के साथ हम कह सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि पंडित जी का कहना था कि “ज्ञान, विज्ञान और संस्कृति, सभी क्षेत्रों में अपने जीवन के विकास के लिए जो भी आवश्यक होगा, वह हम स्वीकार करेगें।
हम नवीनता के विरोधी नहीं और न प्राचीनता के नाम पर रूढ़ियां और मृत परम्पराओं के हम अंध उपासक हैं।’’ उन्होंने कहा कि यही हमारे चिंतन का मूल सोच है।

उन्होंने कहा कि हम राष्ट्र और समाज की आवश्यकतानुसार अपने आप को ढालने वाले लोग हैं, तभी तो विपक्ष से विकल्प तक की यात्रा में हम हिन्दुस्तान के 125 करोड़ देशवासियों का विश्वास जीत पाए। उन्होंने कहा कि ‘वेद से विवेकानंद तक’, ‘सुदर्शन चक्रधारी मोहन से चरखाधारी मोहन दास’ तक – उन सारे विचारों को पंडित दीनदयाल जी ने आधुनिक परिवेश में सरलता से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि भारत की जड़ों से जुड़ी हुई अर्थनीति, राजनीति और समाज नीति ही भारत के भाग्य को बदल सकती है।

उन्होंने जोर देते हुए कहा कि दुनिया का कोई राष्ट्र अपनी जड़ों को काटकर विकास नहीं कर पाया है।