अरविंद केजरीवाल और उनकी राजनीति पूरी तरह से बेनकाब हो चुकी है। अपने ही मंत्री सत्येन्द्र जैन द्वारा दो करोड़ के रिश्वत का अपने एक अन्य मंत्री कपिल मिश्रा द्वारा आरोप का उत्तर उन्होंने कपिल मिश्रा के निलंबन के द्वारा दिया। एक विचित्र स्थिति पैदा हो गई, जबकि एक मुख्यमंत्री अपने ही एक मंत्री से एक दूसरे मंत्री की उपस्थिति में रिश्वत लेता है। जनता के लिए यह विश्वासघात से कम नहीं जब अरविंद केजरीवाल इस आरोप पर अपना स्पष्टीकरण तक देने से इंकार कर देते हैं। एक ओर जब केजरीवाल अपनी चुप्पी तोड़ने को तैयार नहीं, वहीं दूसरी ओर अपनी जवाबदेही से भागने के कारण उन पर अनेक प्रश्न खड़े हो गये हैं। यह विचित्र विडंबना है कि जिस व्यक्ति ने शुचिता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही के मुद्दे पर सत्ता प्राप्त की, आज उसमें इतना भी नैतिक बल नहीं बचा कि जनता से आंखें मिलाकर बात कर सके। अपने राजनैतिक प्रतिद्वंद्वियों पर आधारहीन आरोपों की झड़ी लगाकर इस्तीफे की मांग करने वाला व्यक्ति आज जनता से मुंह चुराता फिर रहा है।
अपने जन्म से ही आम आदमी पार्टी (आप) अनगिनत विरोधाभासों से भरी रही है। कथनी और करनी में दिनों-दिन गहराती खाई शुरू से दिखने लगी थी। दिल्ली में स्वयं को प्रमाणित कर जनता का दिल जीतने की जगह यह पूरे देश में अपनी महत्वाकांक्षाओं के सपने देखने लगी। जैसे ही केजरीवाल के महत्वाकांक्षा पर गोवा और पंजाब की जनता ने पानी फेर दिया, दिल्ली की राजौरी गार्डेन सीट पर हुए उपचुनाव में इनकी जमानत तक जब्त हो गई। लगता है इतना ही काफी नहीं था, दिल्ली में हुए नगर निकाय चुनावों ने आप को बुरी तरह से धूल चटाकर जनता ने पूरी कसर निकाल ली। जहां भाजपा को भारी विजय प्राप्त हुई आप को कुछ ही सीटों पर संतोष करना पड़ा। जनादेश को विनम्रता पूर्वक स्वीकार करने की जगह केजरीवाल ने अपनी इस अपमानजनक हार का ठीकरा ईवीएम मशीनों पर फोड़ना चाहा, पर उनके ही दल के कुछ नेताओं ने इस पर भी उन्हें भरपूर आइना दिखाया। आत्ममंथन की जगह दुर्भावनापूर्ण प्रश्न खड़े कर केजरीवाल ने अब जनता को अपने से बहुत दूर कर लिया है। अब वे एक सत्ता के लिए भूखे नेता की तरह दिखाई दे रहे हैं जो कुर्सी के लिए कुछ भी कर सकता है। आखिर जनता ने केवल दो वर्षों में आप को कठोर दण्ड दे ही दिया। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार एवं रिश्वत के आरोपों ने आप के असली चेहरे को उजागर कर दिया है। पार्टी भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और अनैतिकता के दल-दल में इतनी धंस चुकी है जिसका अंदाजा तक लगाना अब जनता के लिए कठिन जान पड़ता है। केवल दो वर्षों में इसके सात में से छह मंत्रियों को गंभीर आरोपों के कारण त्यागपत्र देना पड़ा और अब स्वयं मुख्यमंत्री कठघरे में खड़े हैं।
क्या कारण है कि जो पार्टी देश में राजनीति की गंदगी साफ करने का और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की उपज होने का दावा करती थी वह स्वयं इतने कम समय में हर प्रकार की राजनैतिक गंदगी की शिकार हो गई ? इसका भी उत्तर बहुत कठिन नहीं है-इसने दिन-रात अपने ही एजेण्डे के विपरीत काम किया और बड़ी तेजी से देश में राजनैतिक बेईमानी और धोखाधड़ी का सबसे बड़ा रिकार्ड बना दिया। आरंभ से ही पार्टी ने एक व्यक्ति केंद्रित व्यवस्था को आगे बढ़ाया जिससे पार्टी में एक व्यक्ति अधिनायकवाद स्थापित हुआ है। अपना कद सबसे ऊंचा करने के लिए एक ओर केजरीवाल ने जहां जनता के धन का खुलेआम दुरूपयोग किया, वहीं दूसरी ओर किसी भी संभावित चुनौती को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखाने में देरी नहीं की। इस तरह के स्वकेंद्रित एवं स्वार्थी राजनीति के कारण आप में कभी आंतरिक लोकतंत्र ठीक से पनप नहीं पाया। इसलिए अब जब केजरीवाल कठघरे में है, आप के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। राजनीति में तुरंत सफलता आप के नेताओं के सिर पर चढ़कर बोलने लगी, जिससे वे जनभावनाओं को हल्के में लेने लगे तथा शुचिता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही उनके लिए मात्र एक जुमला बनकर रह गया। अपने कुशासन एवं अकर्मण्यता को छुपाने के लिए बार-बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अनर्गल आरोप लगाने से जनता के बीच इनकी बची-खुची साख भी खत्म हो चुकी है। साथ ही जिस प्रकार से हर हार पर आप के नेता जनता को जवाब दे रहे हैं, उससे उनके लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्धता पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा हो चुका है। इससे यही लगता है कि आप नेताओं को गुमान है कि वे जनता को जब चाहे तब मूर्ख बना सकते हैं और जनता का ध्यान अपने कुशासन से भटका सकते हैं। केजरीवाल शायद यह भूल गये हैं कि जनता बार-बार उन्हें माफ नहीं करेगी और इस बार तो उन्होंने लक्ष्मण रेखा ही पार कर दी है। अब इतना ही कहा जा सकता है कि आप अब खुद ही अपने को बेनकाब करने में उलझी हुई है।
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