सहकारी संघवाद की अद्भुत मिसाल ‘जीएसटी’: नरेंद्र मोदी

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संसद के केंद्रीय कक्ष से 30 जून की अर्ध-रात्रि के समय स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा कर सुधार ‘वस्तु और सेवा कर’ (जीएसटी) लागू हो गया। जीएसटी लागू होने से कुछ क्षण पहले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने संसद के केंद्रीय कक्ष से जीएसटी की अनिवार्यता और उपयोगिता पर सारगर्भित विचार व्यक्त किये। यहां प्रस्तुत है उनके संबोधन के मुख्य अंश:

राष्ट्र के निर्माण में कुछ ऐसे पल आते हैं जिस पल पर हम किसी नए मोड़ पर जाते हैं, नए मुकाम की ओर पहुंचने का प्रयास करते हैं। आज इस मध्य रात्रि के समय हम सब मिल करके देश का आगे का मार्ग सुनिश्चित करने जा रहे हैं।

कुछ देर बाद, देश एक नई व्यवस्था की ओर चल पड़ेगा। सवा सौ करोड़ देशवासी इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं। जीएसटी की ये प्रक्रिया, ये सिर्फ अर्थव्यवस्था के दायरे तक सीमित है, ऐसा मैं नहीं मानता। पिछले कई वर्षों से अलग-अलग महानुभावों के मार्गदर्शन में, नेतृत्व में, अलग-अलग टीमों के द्वारा जो प्रक्रियाएं चली हैं, वो एक प्रकार से भारत के लोकतंत्र की भारत की, संघीय ढांचे की, सहकारी संघवाद के हमारे अवधारणा की एक बहुत बड़ी मिसाल के रूप में आज ये अवसर हमारा आया है। इस पवित्र अवसर पर आप सब अपना बहुमूल्य समय निकाल करके आए हैं। मैं हृदय से आपका स्वागत करता हूं, आपका आभार व्यक्त करता हूं।

ये जो दिशा हम सबने निर्धारित की है, जो रास्ता हमने चुना है, जिस व्यवस्था को हमने विकसित किया है। यह किसी एक दल की सिद्धि नहीं है, यह किसी एक सरकार की सिद्धि नहीं है, ये हम सबकी सांझी विरासत है, हम सबके सांझे प्रयासों का परिणाम है।

संविधान का मंथन 2 साल, 11 महीने और 17 दिन तक चला था। हिन्दुस्तान के कोने-कोने से विद्वतजन उस बहस में हिस्सा लेते थे, वाद-विवाद होते थे, राजी-नाराजी होती थी, सब मिल करके बहस करते थे, रास्ते खोजते थे। कभी इस पार, कभी उस पार नहीं जा पाए, तो बीच का रास्ता खोज करके चलने का प्रयास करते थे। ठीक उसी तरह ये जीएसटी भी एक लम्बी विचार-प्रक्रिया का परिणाम है। सभी राज्यों समान रूप से, केन्द्र सरकार उसी की बराबरी में और सालों तक चर्चा की है। संसद में इसके पूर्व के भी सांसदों ने, उसके पूर्व के सांसदों ने लगातार इस पर बहस की है। एक प्रकार से best brains of the country उन्होंने लगातार इस काम को किया है और उसी का परिणाम है कि आज ये जीएसटी को हम साकार रूप में देख सकते हैं।

जब संविधान बना तो संविधान ने पूरे देश के नागरिकों को समान अवसर, समान अधिकार, उसके लिए सुनिश्चित व्यवस्था खड़ी कर दी थी और आज जीएसटी एक प्रकार से सभी राज्यों के मोतियों को एक धागे में पिरोने का और आर्थिक व्यवस्था के अंदर एक सुचारू व्यवस्था लाने का एक अहम प्रयास है। जीएसटी एक सहकारी संघवाद की एक मिसाल है, जो हमें हमेशा-हमेशा और अधिक साथ मिलकर चलने की ताकत देगी। जीएसटी, ये ‘टीम इंडिया’ का क्या परिणाम हो सकता है, इस ‘टीम इंडिया’ की कर्तव्य शक्ति का, सामर्थ्य का परिचायक है।

ये जीएसटी परिषद केंद्र और राज्य में मिल करके उन व्यवस्थाओं को विकसित किया है, जिसमें गरीबों के लिए जो पहले उपलब्ध सेवाएं थीं, उन सारी सेवाओं को बरकरार रखा है। दल कोई भी हो, सरकार कहीं की भी हो; गरीबों के प्रति संवेदनशीलता इस जीएसटी के साथ जुड़े हुए सब लोगों ने समान रूप से उसकी चिंता की है।

आज जीएसटी परिषद की 18वीं मीटिंग हुई और थोड़ी देर के बाद जीएसटी लागू होगा। ये भी संजोग है कि गीता के भी 18 अध्याय थे और जीएसटी परिषद की भी 18 मीटिगें हुई और आज हम उस सफलता के साथ हम आगे बढ़ रहे हैं। एक लंबी प्रक्रिया थी, परिश्रम थी, शंकाएं, आशंकाएं थीं, राज्यों के मन में गहरे सवाल थे, लेकिन अथाह पुरूषार्थ, परिश्रम, दिमाग की जितनी भी शक्ति उपयोग में लाई जा सकती है लाकर के इस कार्य को पार किया है।

हम कल्पना करें कि देश आज़ाद हुआ, 500 से ज्यादा रियासतें थीं। अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इन रियासतों को मिलाकर के देश को एक न किया होता, देश का एकीकरण न किया होता तो भारत का राजनीतिक मानचित्र कैसा होता? कैसा बिखराव होता! आजादी होती लेकिन देश का वो मानचित्र कैसा होता? जिस प्रकार से सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों को मिला करके एक राष्ट्रीय एकीकरण का बहुत बड़ा काम किया था, आज जीएसटी के द्वारा आर्थिक एकीकरण का एक महत्वपूर्ण काम हो रहा है। 29 राज्य, 7 केन्द्र शासित प्रदेश, केन्द्र के 7 टैक्स, राज्यों के 8 टैक्स और हर चीजों के अलग-अलग टैक्स का हिसाब लगाएं, तो 500 प्रकार के टैक्स कहीं न कहीं अपनी भूिमका िनभा कर रहे थे। आज उन सबसे मुक्ति पाकर के, अब गंगानगर से ले करके इटानगर तक, लेह से ले करके लक्षद्वीप तक एक राष्ट्र- एक कर यह सपना हमारा साकार होकर रहेगा।

और जब इतने सारे टैक्स, 500, अलग-अलग हिसाब लगाएं 500 टैक्स। अलबर्ट आइंसटीन प्रखर वैज्ञानिक उन्होंने एक बार बड़ी मज़ेदार बात कही थी। उन्होंने कहा था कि दुनिया में अगर कोई चीज समझना सबसे ज्यादा मुश्किल है तो वो है आयकर, यह अलबर्ट आइंसटीन ने कहा था। मैं सोच रहा था अगर वो यहां होते तो पता नहीं ये सारे टैक्स देखकर के क्या कहते, क्या सोचते? और इसलिए, और हमने देखा है कि उत्पाद के अंदर के उत्पादन में तो ज्यादा कोई बहुत असमानता नहीं आती है, लेकिन जब प्राॅडक्ट बाहर जाता है तो राज्यों के अलग-अलग टैक्स के कारण असमानता दिखती है। एक ही चीज दिल्ली में एक दाम होगा, 25-30 किलोमीटर गुरूग्राम में दूसरा चार्ज लगेगा और उधर नोएडा में गए तो तीसरा होगा। क्यों, क्योंकि हरियाणा का टैक्स अलग, उत्तर प्रदेश का टैक्स अलग, दिल्ली का अलग। इन सारी विविधताओं के कारण सामान्य नागरिक के मन में सवाल उठता था कि मैं गुरूग्राम में जाता हूं तो यही चीज मुझे इतने में मिल जाती है, वही चीज नोएडा में जाऊं तो इतने में मिलती है और दिल्ली में जाता हूं तो इतने में मिलती है। एक प्रकार से हर किसी के लिए कन्फ्यूजन की स्थिति रहती थी। अब पूंजी निवेश में भी विदेशों के लोगों के लिए यह सवाल रहता था कि भई किस, एक व्यवस्था हम समझते हैं और काम कहीं सोचते हैं, तो दूसरे राज्य में दूसरी व्यवस्था सामने आती है और एक कन्फ्यूजन का माहौल बना रहता था, आज उससे मुक्ति की ओर हम आगे बढ़ रहे हैं।

अरुण जी ने बड़ा विस्तार से वर्णन किया है कि जीएसटी के कारण Octroi की व्यवस्था हो, एंट्री टैक्स हो, सेल टैक्स हो, वैट हो, न जाने कितनी चीजें, सारा वर्णन उन्होंने विस्तार से किया सब खत्म हो जाएगा। हम जानते हैं कि हम एंट्री के टोल पर घंटों तक हमारे वाहन खड़े रहते हैं। देश का अरबों खरबों का नुकसान होता है। ईंधन के जलने के कारण पर्यावरण का भी उतना ही नुकसान होता है। इस सारी व्यवस्था एकसमान होने के कारण, एक प्रकार से उन सारी अव्यवस्थाओं में से एक मुक्ति का मार्ग हमें प्राप्त होगा।

कभी-कभार खराब होने वाला माल खासकरके समय पर पहुंचना बहुत आवश्यक होता था, लेकिन वो जब नहीं पहुंचता था तो उसके कारण उस पहुंचाने वाले का भी नुकसान होता था और जो Processing करता था उसका भी नुकसान होता था। इन सारी जो व्यवहार जीवन की अव्यवस्थाएं थीं, उन अव्यवस्थाओं से आज हम मुक्ति पा रहे हैं और हम आगे बढ़ रहे हैं।
जीएसटी के तौर पर देश एक आधुनिक कर प्रणाली की ओर आज कदम रख रहा है, बढ़ रहा है। एक ऐसी व्यवस्था है जो ज्यादा सरल है, ज्यादा पारदर्शी है; एक ऐसी व्यवस्था है जो जो काले धन को और भ्रष्टाचार को रोकने में एक अवसर प्रदान करती है। एक ऐसी व्यवस्था है जो ईमानदारी को अवसर देती है, जो ईमानदारी से व्यापार करने के लिए एक उमंग, उत्साह करने की व्यवस्था इससे मिलती है। एक ऐसी व्यवस्था है जो नए गवर्नेंस के कल्चर को भी ले करके आती है और जिसके द्वारा जीएसटी हम लेकर आए हैं।

कर आतंक और इंस्पेक्टर राज, ये बात कोई नई नहीं है। सब दूर ये शब्द हम सुनते आए हैं, परेशानी भुगतने वालो से हमने उस चिंता को अनुभव किया है और जीएसटी की इस व्यवस्था के कारण Technologically के लिए सारा ट्रेल होने के कारण, अब अफसरशाही, सब उसके लिए ग्रे एरिया बिलकुल समाप्त हो रहा है। उसके कारण जो सामान्य व्यापारियों को, सामान्य कारोबारियों को अफसरों के द्वारा जो परेशानियां होती रही है, उससे मुक्ति का मार्ग इस जीएसटी के द्वारा, कोई ईमानदार व्यापारी बेवजह परेशान हो वो दिन इसके साथ खत्म होने की पूरी संभावना इस जीएसटी के अंदर है। इस पूरी व्यवस्था में, छोटे व्यापारियों को 20 लाख तक का व्यापार करने वालों को पूरी तरह मुक्ति दे दी गई है और जो 75 लाख तक हैं, उनको भी कम से कम इस चीजों से जुड़ना पड़े इसकी व्यवस्था की है। ये बात ठीक है कि स्ट्रक्चर में लाने के लिए कुछ व्यवस्थाएं की हैं, लेकिन वो मिनिमम व्यवस्थाएं, नाममात्र की व्यवस्थाएं की गई हैं और उसके कारण सामान्य मानवी जो है, उसके लिए इस नई व्यवस्था से कोई बोझ होने वाला नहीं है।

जीएसटी की व्यवस्था, ये बड़ी-बड़ी आर्थिक भाषा में जो बोला जाता है, वहां तक सीमित नहीं है। बड़े-बड़े शब्द इसके साथ जोड़े जाते हैं, लेकिन अगर सरल भाषा में कहें कि देश के गरीबों के हित के लिए ये व्यवस्था सबसे ज्यादा सार्थक होने वाली है। आजादी के 70 साल के बाद भी हम गरीबों तक जो पहुंचा नहीं पाए हैं, ऐसा नहीं कि प्रयत्न नहीं हुए हैं। सब सरकारों ने प्रयत्न किए हैं, लेकिन संसाधनों की मर्यादा रही है कि हम हमारे देश के गरीब की उन आवश्यकताओं की पूर्ति में कहीं न कहीं कम पड़े हैं।

अगर हम संसाधनों को सुव्यस्थित ढंग से और बोझ किसी एक पर न जाएं, बोझ sparred हो जाएं, Horizontal जितना हम sparred करें, उतना ही देश को Vertical ले जाने की सुविधा बढ़ती है। और इसलिए उस दिशा में जाने का काम, अब वो कच्चा बिल, पक्का बिल, ये सारे खेल खत्म हो जाएंगे, बड़ी सरलता हो जाएगी। और मुझे विश्वास है छोटे-मोटे व्यापारी भी, ये जो गरीब को लाभ मिलने वाला है, वो जरुर उसको ट्रांसफर करेंगे, ताकि गरीब का भला, हम लोगों का आगे बढ़ाने के लिए बहुत-बहुत काम आने वाला है।

कभी-कभी आशंकाएं होती हैं कि ये नहीं होगा, ढिकना नहीं होगा, फलाना नहीं होगा और हमारे देश में हम जानते हैं कि जब 11वीं और 12वीं के रिजल्ट ऑनलाइन देने की शुरूआत की और एक साथ सब गए जब, तो सारा हैंग-अप हो गया और दूसरे दिन खबर यही बन गई कि ऐसा हो गया। आज भी काफी ऐसी ही चर्चा होती है।

ये बात ठीक है कि हर किसी को टेक्नोलॉजी नहीं आती है, लेकिन हर परिवार में दसवीं, बारहवीं का अगर विद्यार्थी है, तो उसको ये सारी चीजें आती हैं। कोई मुश्किल काम नहीं, इतना सरल है, घर में 10वीं, 12वीं का विद्यार्थी भी रहता है, वो चीजें छोटे से व्यापारी को भी और वो मदद कर सकता है, एक रास्ता निकल सकता है।

जो लोग आशंकाएं करते हैं, मैं कहता हूं कृपा करके ऐसा मत कीजिए। अरे आपका पुराना डॉक्टर हो, आप उसी से अपनी आंखें लगातार चेक करवाते हो। वो ही हर बार आपके नंबर निकालता हो, आपका चश्मा बनाने वाला भी निश्चित हो, आप वहां अपने नंबर बनवाते हो, और फिर भी जब नया नंबर वाला चश्मा आता है तो एकाध-दो दिन तो आंख ऊपर-नीचे करके एडजस्ट करना पड़ता है; ये बस इतना ही है। इसलिए थोड़ा सा हम प्रयास करेंगे इस व्यवस्था के साथ हम आसानी से जुड़ जाएंगे। और इसलिए थोड़ा सा अगर हम प्रयास करेंगे तो इस व्यवस्था से हम आसानी से जुड़ जाएंगे। मैं आपसे आग्रह करता हूं कि अफवाहों के बाजार को बंद करें और अब, जब देश चल पड़ा है तो सफल कैसे हो, देश के गरीब-जनों की भलाई के लिए कैसे काम हो, उस पर हम ले करके चलें और तब जा करके कम होगा।

जीएसटी के इस निर्णय का, वैश्विक आर्थिक जगत में एक बहुत सकारात्मक प्रभाव हुआ है। भारत में जो पूंजी निवेश करना चाहते हैं उनके लिए भी एक प्रकार की व्यवस्था बहुत आसानी से वो समझ पाते हैं और उसको चला पाते हैं। मैं समझता हूं भारत में और आज दुनिया का एक प्रिय गंतव्य के रूप में, निवेश के लिए प्रिय गंतव्य के रूप में भारत को हर प्रकार से स्वीकृति मिली है और इसके लिए मैं समझता हूं कि एक अच्छी सुविधा विश्व–व्यापार से जुड़े हुए लोगों को भी भारत के साथ व्यापार करने के लिए मिलेगी।

जीएसटी एक ऐसा उत्प्रेरक है जो देश के व्यापार को, उसमें जो असंतुलन है, उस असंतुलन को खत्म करेगा। जीएसटी एक ऐसा उत्प्रेरक है जिससे निर्यात संबर्धन को भी बहुत बल मिलेगा। जीएसटी एक वो व्यवस्था है, जिसके कारण आज हिन्दुस्तान में जो राज्य ठीक से विकसित हुए हैं, उनको विकास के अवसर तुरंत मिलते हैं, लेकिन जो राज्य पीछे रह गए हैं, उनको वो अवसर तलाशने में बहुत दम घोटना पड़ता है। उन राज्यों का कोई दोष नहीं है। प्राकृतिक संपदा से समृद्ध हैं, हमारा बिहार देखें, हमारा पूर्वी उत्तर प्रदेश देखें, हमारा पश्चिम बंगाल देखें, हमारे नॉर्थ-ईस्ट के देखें, हमारा उड़ीसा देखें, संसाधन, प्राकृतिक संसाधनों से भरे पड़े हैं। लेकिन अगर उनको ये, ये व्यवस्था, जब एक कानून की व्यवस्था मिल जाएगी, मैं साफ देख रहा हूं कि हिन्दुस्तान का पूर्वी हिस्सा के विकास में मैं जो कुछ भी कमी रह गई है, उसको पूरा करने का सबसे बड़ा अवसर, सबसे बड़ा अवसर इससे मिलने वाला है। हिन्दुस्तान के सभी राज्यों को विकास के समान अवसर प्राप्त होना, ये अपने-आप में विकास की राह पर आगे बढ़ने का एक बहुत बड़ा अवसर है।

जीएसटी, एक प्रकार से जैसे हमारी रेलवे है। रेलवे- केंद्र और राज्य मिल करके चलाते हैं, फिर भी भारतीय रेल के रूप में हम देखते हैं। राज्य के अंदर स्थानीय रूप से मदद मिलती है, एक समान रूप से हम देखते हैं। हमारे केंद्रीय सेवा के अधिकारी केंद्र और राज्यों में वितरित हैं, फिर भी दोनों तरफ से मिल करके चला सकते हैं। एक जीएसटी ऐसी व्यवस्था है कि जिसमें पहली बार केंद्र और राज्य के लोग मिल करके निश्चित दिशा में काम करने वाले हैं। ये अपने-आप में ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के लिए एक उत्तम से उत्तम व्यवस्था आज हो रही है, और जिसका प्रभाव आने वाले दिनों में, आने वाली पीढ़ियां हमें गर्व के साथ स्वीकार करेंगी।

2022, भारत की आजादी के 75 साल हो रहे हैं। ‘नए भारत’ का सपना ले करके हम चल पड़े हैं। सवा सौ करोड़ देशवासी ‘नए भारत’ बनाने के सपनों को ले करके चल रहे हैं और इसलिए जीएसटी एक अहम भूमिका अदा करेगी और हम लोगों ने जिस प्रकार से प्रयास किया है। जीएसटी ‘नए भारत’ की एक टैक्स व्यवस्था है। जीएसटी ‘डिजिटल भारत’ की टैक्स व्यवस्था है। जीएसटी सिर्फ ‘Ease of doing Business’ नहीं है, जीएसटी ‘Way of Doing Business’ की भी एक दिशा दे रहा है। जीएसटी सिर्फ एक टैक्स सुधार नहीं है, लेकिन वो आर्थिक सुधार का भी एक अहम कदम है। जीएसटी आर्थिक सुधार से भी आगे एक सामाजिक सुधार का भी एक नया तबका, जो एक ईमानदारी के उत्सव की ओर ले जाने वाला ये बन रहा है। कानून की भाषा में जीएसटी-वस्तु और सेवा कर के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन जीएसटी से जो लाभ मिलने वाले हैं और इसलिए मैं कहूंगा कि कानून भले ही कहता हो कि वस्तु और सेवा कर, लेकिन हकीकत में ये Good and Simple Tax है और Good इसलिए कि टैक्स पर टैक्स, टैक्स पर टैक्स जो लगते थे, उससे मुक्ति मिल गई। सिंपल इसलिए है कि पूरे देश में एक ही फॉर्म होगा, एक ही व्यवस्था होगी और उसी व्यवस्था से चलने वाला है और इसलिए उसे हमें आगे बढ़ाना है।