‘मुद्रा योजना’ महिला नेतृत्व वाले विकास की गाथा लिखने में सहायक सिद्ध हो रही है

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अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च)

मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद महिला सशक्तिकरण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है। इस दौरान सरकार ने ‘महिलाओं के विकास’ के पारंपरिक अर्थ को बदलने का प्रयास किया है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘महिलाओं के विकास’ के स्थान पर अब ‘महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास’ पर जोर दिया है। देश की यह आधी आबादी हमारी विकास यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता रखती है। इसी को देखते हुए केंद्र की भाजपा सरकार ने महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कई योजनाएं और पहल की हैं। ऐसे ही एक पहल है प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई), जो महिला उद्यमियों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है। हालांकि, यह योजना पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए है।

सरकार के एनएसएसओ सर्वेक्षण (2013) के अनुसार देश में 5.77 करोड़ छोटी/सूक्ष्म इकाइयां हैं, जिनमें लगभग 12 करोड़ लोग कार्यरत हैं और इसमें से अधिकांश एकल स्वामित्व वाले उद्यम हैं। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गो के पास इनमें से 60 प्रतिशत इकाइयों का मालिकाना हक है और ज्यादातर इकाइयां औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के बाहर हैं। इन इकाइयों के पास कर्ज लेने के लिए अनौपचारिक स्रोत नहीं है और उनको अपने व्यापार के लिए ज्यादातर निजी पूंजी पर ही निर्भर रहना पड़ता है। 8 अप्रैल, 2015 को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस क्षेत्र में वित्तपोषण की मांग को देखते हुए ‘प्रधानमंत्री मुद्रा योजना’ की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी लिमिटेड (मुद्रा) की स्थापना ‘अनफंडेड’ सूक्ष्म कंपनियों को निधि देने के लिए की गई थी। योजना के तहत गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यम को 10 लाख रुपये तक का ऋण प्रदान किया जाता है, जो उद्यमियों की विभिन्न आवश्यकताओं के हिसाब से होता है। मुद्रा, पीएमएमवाई के अंतर्गत तीन श्रेणियों में— ‘शिशु,’ ‘किशोर,’ और ‘तरुण’ में ऋण देती है। ‘शिशु’ योजना के तहत 50,000 रुपये तक का ऋण दिया जाता है, ‘किशोर’ योजना में 50,000 रुपये से 5 लाख रुपये तक और ‘तरुण’ योजना के तहत 5 लाख से 10 लाख रुपये तक का ऋण दिया जाता है।

इस योजना का प्रमुख लक्ष्य भारत में उद्यमशीलता की संस्कृति को बढ़ावा देना है। ‘मुद्रा ऋण’ बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा उन महिलाओं को प्रदान किया जा रहा है जो अपना उद्यम शुरू करने की इच्छा रखती हैं। मुद्रा ऋण पुरुषों और महिलाओं के लिए उपलब्ध हैं, जो अपने छोटे और मध्यम आकार के व्यवसायों को शुरू करने, विस्तार करने, समर्थन करने या आधुनिकीकरण करने की इच्छा रखते हैं। महिलाओं को कारोबार शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करने में यह योजना फायदेमंद साबित हो रही है। महिला व्यवसायियों के लिए अब तक 70 प्रतिशत ऋण स्वीकृत किए जा चुके हैं।

श्रम और रोजगार मंत्रालय ने मुद्रा योजना के तहत रोजगार सृजन का अनुमान लगाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण के अनुसार मुद्रा योजना ने लगभग 3 वर्षों (यानी 2015 से 2018 तक) की अवधि के दौरान 1.12 करोड़ अतिरिक्त रोजगार पैदा करने में मदद की। समग्र स्तर पर मुद्रा लाभार्थियों के स्वामित्व वाले प्रतिष्ठानों द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त रोजगार में शिशु श्रेणी के ऋण का लगभग 66 प्रतिशत हिस्सा है, जिसके बाद क्रमशः किशोर (19 प्रतिशत) और तरुण (15 प्रतिशत) श्रेणियां हैं। 26 नवंबर, 2021 तक इन ऋणों के कुल लाभार्थियों की संख्या 32.11 करोड़ थी। इन 32.11 करोड़ लोगों में से 21.74 करोड़ महिलाएं थीं। इस कार्यक्रम के तहत प्रत्यक्ष रूप से सृजित सभी रोजगारों में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 70 प्रतिशत है।

विकास आनन्द