‘महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन देने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय प्रगतिशील, ऐतिहासिक और शानदार’

| Published on:

भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं लोक सभा सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी ने 17 फरवरी को पार्टी के केन्द्रीय कार्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित किया और कहा कि महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन के मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ऐतिहासिक है।

श्रीमती लेखी ने कहा कि महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन देने की मांग 17 सालों से चली आ रही थी। अदालत में भी यह मामला लगभग 10 वर्षों से चल रहा था। सुप्रीम कोर्ट का आज का निर्णय हर लिहाज से एक अच्छा फैसला है। मैं प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद देना चाहती हूं कि उन्होंने महिलाओं को सेना में परमानेंट कमीशन देने की दिशा में व्यापक कदम उठाये और आज सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महिलाओं के पक्ष में आया। मैं जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अजय रस्तोगी को विशेष रूप से धन्यवाद देना चाहती हूं कि उन्होंने महिलाओं की सेना में परमानेंट कमीशन की मांग को पूरा करते हुए ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। मैं इस मामले से जुड़े पूर्व जजों जस्टिस कौल और जस्टिस एम सी गर्म को भी धन्यवाद करती हूं।

इस मामले में कई पुरुष अधिकारियों ने भी मदद की और जो भी लोग इस न्यायिक प्रक्रिया में शामिल रहे, मैं उनका आज धन्यवाद करना चाहती हूं। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि सेना में स्थाई कमीशन पाने की महिलाओं की मांग पर दिल्ली हाई कोर्ट में यह मामला 2003 से चल रहा था। इसके बाद 2009 तक 9 महिला अफसरों ने हाईकोर्ट में इसी मुद्दे पर अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं। 12 मार्च 2010 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इन याचिकाओं पर फैसला सुनाया और महिलाओं को सेना में स्थाई कमीशन देने का आदेश दिया, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस की यूपीए सरकार ने हाई कोर्ट के इस निर्णय को जुलाई 2010 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। तब कांग्रेस की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ अपनी दलील में कहा था कि सेना में ज्यादातर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले जवान महिला अधिकारियों से कमांड लेने को लेकर बहुत सहज नजर नहीं आते। महिलाओं की शारीरिक स्थिति, परिवारिक दायित्व जैसी बहुत सी बातें उन्हें कमांडिंग अफसर बनाने में बाधक हैं।