विपक्ष शासित राज्यों में महिला सुरक्षा की स्थिति चिंताजनक : एक रिपोर्ट

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आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में पीजी प्रशिक्षु छात्रा के खिलाफ हुए जघन्य अपराध ने विपक्ष शासित राज्यों में महिलाओं के सामने आने वाली गंभीर परिस्थितियों को उजागर किया है। यह घटना न केवल कामकाजी महिलाओं के लिए सुरक्षा की कमी को रेखांकित करती है, बल्कि कोलकाता के आरजी कर अस्पताल के भीतर चिंताजनक ‘पोलिटिकल डॉयमिक्स’ को भी उजागर करती है। यह महिलाओं की सुरक्षा के लिए विपक्षी दलों की प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल उठाता है, क्योंकि विपक्षी सरकारें अक्सर न्याय सुनिश्चित करने के बजाय गलत काम करने वालों को बचाने पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित करती हैं

श्चिम बंगाल मे टीएमसी सरकार ने अपराधियों को बचाने एवं राजनीतिक पैंतरेबाजी का एक चिंताजनक पैटर्न प्रदर्शित किया है। संदेशखली मामले में सरकार ने अपराधी को बचाया जबकि संदेशखली पीड़िता रेखा पात्रा को निशाना बनाया गया। इसके विपरीत, भाजपा रेखा के पक्ष में खड़ी रही, यहां तक कि उन्हें बशीरहाट से उम्मीदवार भी बनाया, जहां प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें ‘शक्ति स्वरूपा’ के रूप में संबोधित किया।

विपक्ष शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और अत्याचारों का एक चिंताजनक पैटर्न सामने आ रहा है। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि इन सरकारों द्वारा महिलाओं की पीड़ा के

विपक्ष शासित राज्यों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध और अत्याचारों का एक चिंताजनक पैटर्न सामने आ रहा है। सबसे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि इन सरकारों द्वारा महिलाओं की पीड़ा के प्रति स्पष्ट उदासीनता, जवाबदेही की कमी और ऐसे गंभीर मुद्दों का राजनीतिकरण किया जा रहा है

प्रति स्पष्ट उदासीनता, जवाबदेही की कमी और ऐसे गंभीर मुद्दों का राजनीतिकरण किया जा रहा है।
चिंताजनक घटनाओं की बढ़ती सूची इन राज्यों में महिलाओं की सुरक्षा के प्रति व्यापक उपेक्षा को उजागर करती है, तथा महिलाओं के सामने आने वाली चुनौतियों की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है, जहां राजनीतिक प्राथमिकताएं न्याय पर हावी हो जाती हैं।

पश्चिम बंगाल: महिलाओं की सुरक्षा पर गहरा संकट

पश्चिम बंगाल में कई ऐसी दर्दनाक घटनाएं हुई हैं जो महिलाओं की सुरक्षा पर सवालिया निशान लगाती हैं। सबसे हालिया मामला, आरजी कर मेडिकल कॉलेज बलात्कार और हत्या कांड (2024) है, जिसमें कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया और उसकी हत्या कर दी गई। यह चौंकाने वाली घटना राज्य में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के परेशान करने वाले पैटर्न का नवीनतम उदाहरण है।

उत्तरी दिनाजपुर (2024) में एक महिला और एक युवक को तृणमूल कांग्रेस के एक नेता ने सार्वजनिक रूप से लाठियों से पीटा, जिससे पता चलता है कि राज्य में कैसे बेखौफ होकर इस तरह के अपराधों को अंजाम दिया जा रहा है। इसी तरह, डायमंड हार्बर गैंग रेप केस (2023), जिसमें एक महिला के साथ पुरुषों के एक समूह ने सामूहिक बलात्कार किया, यह प्रदेश में महिलाओं के सामने लगातार आ रहे खतरे को उजागर करता है।

संदेशखली बलात्कार कांड (2023) ने इस भयावह सच्चाई में एक और परत जोड़ दी, जिसमें जमीन हड़पने और यौन उत्पीड़न के 900 से ज्यादा मामले सामने आए। वहीं, हंसखली बलात्कार और हत्या कांड (2022) हुआ, जिसमें 14 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया, जो पश्चिम बंगाल में नाबालिगों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। ये मामले कोई अपवाद नहीं हैं; ये एक व्यापक पैटर्न का हिस्सा हैं जिसमें बामनघाटा बलात्कार कांड (2017), गंगनापुर बलात्कार और हत्या कांड (2015), जादवपुर विश्वविद्यालय छेड़छाड़ कांड (2014), मध्यमग्राम बलात्कार कांड (2013), कामदुनी सामूहिक बलात्कार और हत्या (2013) और कुख्यात पार्क स्ट्रीट बलात्कार कांड (2012) शामिल हैं।

ये घटनाएं राज्य के सुरक्षा उपायों की प्रभावशीलता और ममता बनर्जी जैसे नेताओं की राजनीतिक बयानबाजी पर गंभीर सवाल उठाती हैं। वादों और आश्वासनों के बावजूद जमीनी हकीकत यह बताती है कि पश्चिम बंगाल में महिलाएं अभी भी डर के साये में जी रही हैं, हिंसा और शोषण का शिकार हो रही हैं, जबकि अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं, जो न्याय की उपेक्षा की संस्कृति को बढ़ावा दे रहा हैं।

केरल: घोटालों से जूझता राज्य

केरल यौन हिंसा और दुर्व्यवहार से जुड़े मामलों से अछूता नहीं रहा है। सूर्यनेल्ली बलात्कार मामला, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पीजे कुरियन शामिल रहे, और सौर घोटाला मामला, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगे, ने राज्य के नेतृत्व पर लंबे समय एक प्रश्नचिन्ह लगाये रखा। न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म उद्योग के भीतर यौन शोषण के चौंकाने वाले मामलों का खुलासा किया। यौन दुराचार के आरोप कई प्रमुख हस्तियों पर भी लगे हैं,

केरल यौन हिंसा और दुर्व्यवहार से जुड़े मामलों से अछूता नहीं रहा है। सूर्यनेल्ली बलात्कार मामला, जिसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पीजे कुरियन शामिल रहे, और सौर घोटाला मामला, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी के खिलाफ यौन शोषण के आरोप लगे, ने राज्य के नेतृत्व पर लंबे समय एक प्रश्नचिन्ह लगाये रखा। न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट ने मलयालम फिल्म उद्योग के भीतर यौन शोषण के चौंकाने वाले मामलों का खुलासा किया

जिनमें पीटीए अध्यक्ष, केरल क्रिकेट एसोसिएशन के कोच और एक वरिष्ठ अधिवक्ता शामिल हैं।
ई. शानवास खान द्वारा एक वकील का यौन उत्पीड़न और केरल केंद्रीय विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर इफ्तीकर अहमद के खिलाफ छेड़छाड़ का आरोप जैसी घटनाएं इस मुद्दे की व्यापक प्रकृति को दर्शाती हैं। छात्राओं की छेड़छाड़ की गई तस्वीरों को साझा करने से लेकर सीपीआई (एम) कार्यकर्ताओं द्वारा दलित महिला पर हमला करने तक, राज्य में कई ऐसे मामले सामने आये।

तमिलनाडु: महिलाओं के खिलाफ अपराधों में चिंताजनक वृद्धि

तमिलनाडु में डीएमके के तहत ‘द्रविड़ मॉडल’ में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। परेशान करने वाले मामलों में एक फर्जी एनसीसी कैंप में यौन उत्पीड़न, एक 17 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और एक दलित महिला की उसके ही परिवार द्वारा उसकी जाति में शादी करने पर जलाकर हत्या कर दी गई।

राज्य में यौन उत्पीड़न एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है, जैसाकि 20 वर्षीय महिला की मौत से पता चलता है, जो अपने हमलावरों से भागते समय ट्रैफिक में फंस गई, इसके अलावा डीएमके कार्यकर्ता द्वारा सामूहिक बलात्कार की घटना और डीएमके विधायक के बेटे द्वारा दलित घरेलू नौकरानी के साथ दुर्व्यवहार इसके कुछ अन्य उदाहरण हैं। राज्य में 17 वर्षीय लड़के द्वारा 10 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न और एक पादरी द्वारा 14 वर्षीय लड़की से छेड़छाड़ की घटनाएं भी हुईं, जबकि तमिल लड़कियों को दुबई भेजने वाले एक यौन तस्करी गिरोह का भंडाफोड़ किया गया, जिससे संगठित अपराध का काला धंधा उजागर हुआ।

तेलंगाना: महिला सुरक्षा पर बढ़ता खतरा

तेलंगाना में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में 6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जो एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है। एक पुलिस उपनिरीक्षक द्वारा एक महिला हेड कांस्टेबल का बलात्कार और एक अंतर-राज्यीय बाल-बिक्री रैकेट के संबंध में तीन महिलाओं की गिरफ्तारी, राज्य की कमज़ोरियों को उजागर करती है। कांग्रेस पार्षद द्वारा यौन उत्पीड़न की घटना और एक स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा महिला चिकित्सा अधिकारियों को परेशान करने की घटना विचलित करती हैं।
एक ऑटो चालक और उसके साथियों द्वारा एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना इन भयावह आंकड़ों में और इजाफा करती है तथा महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक चिंताजनक तस्वीर पेश करती है।

कर्नाटक: यौन हिंसा की बढ़ती घटनाएं

कर्नाटक में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है, जिसमें बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण, और दहेज हत्याएं शामिल हैं। ऐसे ही एक मामले में एक बाइक राइड के दौरान 21 वर्षीय कॉलेज छात्रा का यौन उत्पीड़न और पुरुषों के एक समूह द्वारा एक महिला को अवैध रूप से हिरासत में लेना और उसके साथ मारपीट करना राज्य में बिगड़ती सुरक्षा स्थिति को दर्शाता है।

हिमाचल प्रदेश: यौन उत्पीड़न की चिंताजनक प्रवृत्ति

हिमाचल प्रदेश जैसे अपेक्षाकृत शांत राज्य में भी यौन हिंसा एक गंभीर चिंता का विषय बन कर उभरी है। एक सरकारी स्कूल के शिक्षक पर 16 वर्षीय दलित छात्रा से छेड़छाड़ करने का मामला दर्ज किया गया, जबकि एक महिला के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया, इस दौरान उसके पति को पेड़ से बांध दिया गया। मैक्लोडगंज में एक पोलिश महिला यात्री के साथ बलात्कार की घटना सामने आयी, जिसने महिला पर्यटकों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा किया।

झारखंड: यौन हिंसा से त्रस्त राज्य

झारखंड के दुमका में अपने पति के साथ भारत की यात्रा पर आई स्पेन की एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और एक स्कूल वैन चालक द्वारा 3 वर्षीय नर्सरी छात्रा के साथ यौन शोषण जैसी घटनाएं हुई हैं। कांग्रेस के एक विधायक, एक आईएएस अधिकारी और लड़कियों के लिए चलने वाले एक सरकारी आवासीय विद्यालय की प्रिंसिपल और गार्ड के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों ने इस चुनौती को और भी गंभीर कर दिया। रांची में एक सेना के जवान की पत्नी के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने राज्य के पहले से ही गंभीर रिकॉर्ड को और खरनाक बना दिया है।

विभिन्न राज्यों में हुई इन भयावह घटनाओं ने एक बहुत ही चिंताजनक मुद्दे को उजागर किया है। देश में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने में विफल विपक्ष को जवाबदेह ठहराए जाने की तत्काल

झारखंड के दुमका में अपने पति के साथ भारत की यात्रा पर आई स्पेन की एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार और एक स्कूल वैन चालक द्वारा 3 वर्षीय नर्सरी छात्रा के साथ यौन शोषण जैसी घटनाएं हुई हैं। कांग्रेस के एक विधायक, एक आईएएस अधिकारी और लड़कियों के लिए चलने वाले एक सरकारी आवासीय विद्यालय की प्रिंसिपल और गार्ड के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों ने इस चुनौती को और भी गंभीर कर दिया

आवश्यकता है। किसी भी सरकार के मूल कर्तव्य के रूप में अपने नागरिकों – विशेष रूप से महिलाओं – की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। हालांकि, विपक्ष ने राजनीतिक लाभ के लिए अपने प्रयास में इस जिम्मेदारी को बार-बार नजरअंदाज किया है।

यह उपेक्षा सिर्फ़ शासन की विफलता नहीं है, बल्कि विपक्ष द्वारा अपने नियंत्रण वाले राज्यों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने में असमर्थता का सीधा परिणाम है। इन राज्यों में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध विपक्ष के अप्रभावी शासन की एक गंभीर तस्वीर पेश करते हैं। जैसे-जैसे ये राज्य लगातार असुरक्षित होते जा रहे हैं, विपक्ष द्वारा महत्वपूर्ण मुद्दों को ठीक से न संभालना भी देश की वैश्विक प्रतिष्ठा को धूमिल करने लगा है, जिससे उन नागरिकों का नेतृत्व करने और उनकी रक्षा करने की उनकी क्षमता के बारे में गंभीर चिंताएं पैदा हो रही हैं, जिनका वे प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं।

इस स्थिति में और भी अधिक परेशान करने वाली बात यह है कि विपक्ष इन महत्वपूर्ण मुद्दों के प्रति स्पष्ट रूप से उदासीन है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं को संबोधित करने के बजाय, विपक्ष ने उन्हें केवल ‘ध्यान भटकाने वाली बातें’ बताकर खारिज कर दिया है।

लाखों महिलाओं के जीवन को सीधे प्रभावित करने वाले मुद्दों को दरकिनार करके विपक्ष न केवल शासन के एक महत्वपूर्ण पहलू की अनदेखी कर रहा है, बल्कि महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा के प्रति खतरनाक उदासीनता भी दिखा रहा है। यह उदासीनता किसी भी लोकतांत्रिक समाज की नींव को कमजोर करती है, जहां नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि होनी चाहिए।

महिलाओं की सुरक्षा के जरूरी मुद्दे को संबोधित करने में विपक्ष की विफलता, साथ ही विभाजनकारी राजनीति में उनकी व्यस्तता, देश के नागरिकों की भलाई के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। महिलाओं की सुरक्षा कोई राजनीतिक हथियार नहीं है जिसे सुविधानुसार इस्तेमाल किया जाए या अनदेखा किया जाए; यह एक बुनियादी जिम्मेदारी है जिसे सत्ता में बैठे लोगों को निभाना चाहिए। विपक्ष को देश की महिलाओं को स्पष्टीकरण देना चाहिए और सबसे महत्वपूर्ण बात, भविष्य में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।

राजनीतिक परिदृश्य और महिला मुद्दों का हाशिए पर होना

जैसे-जैसे हम राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से देखते हैं, यह स्पष्ट हो जाता है कि विपक्ष द्वारा महिलाओं के मुद्दों को हाशिए पर रखना उनकी उपेक्षा करने वाली एक व्यापक प्रवृत्ति का हिस्सा है। ऐसे माहौल में जहां राजनीतिक लाभ को हर चीज से ऊपर प्राथमिकता दी जाती है, महिलाओं के बुनियादी अधिकारों और सुरक्षा को अक्सर पीछे धकेल दिया जाता है। यह सिर्फ़ नीतिगत विफलता नहीं है, बल्कि नैतिक विफलता है जो विपक्ष के शासन के दृष्टिकोण को दर्शाती है।

विपक्ष का विभाजनकारी राजनीति पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह महिलाओं की सुरक्षा की चिंताओं को नजरअंदाज करने की कीमत पर नहीं आना चाहिए। इन महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान हटाने का प्रयास अपनी कमियों से दूर भागने का एक सुनियोजित प्रयास है। हालांकि, यह रणनीति न केवल भेदभावपूर्ण है बल्कि समाज के ताने-बाने को भी बहुत नुकसान पहुंचाती है।

महिलाओं की सुरक्षा एक बहुआयामी मुद्दा है जिसके लिए एक व्यापक दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें कानूनी सुधार, सामाजिक परिवर्तन और प्रभावी कानून शामिल हैं। दुर्भाग्य से, विपक्ष ने इनमें से किसी भी क्षेत्र में बहुत कम पहल की है। महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए एक सार्थक कानून का प्रस्ताव या उसका समर्थन करने में उनकी विफलता, साथ ही अपने शासन वाले राज्यों में कार्रवाई की कमी, उनकी बयानबाजी और उनके कार्यों के बीच विसंगति को उजागर करती है।